आज देखा जो कोई शख़्स दीवाना मिरे दोस्त याद फिर आया मुझे मेरा फ़साना मिरे दोस्त मैं तिरे हिज्र में चुप-चाप चले जाता हूँ दिल को आता है कहाँ कोई बहाना मिरे दोस्त ख़ुद से निकलूँ तो नए शहर का नक़्शा देखूँ इक ज़माने से हूँ महरूम-ए-ज़माना मिरे दोस्त दिल की बस्ती में फ़क़त आख़िरी तुम ही हो मकीं एक इक कर के हुए दिल से रवाना मिरे दोस्त हम से आँखें न मिलाओ कि हम आवारा हैं ऐसे लोगों का कहाँ एक ठिकाना मिरे दोस्त