मिरे वहम-ओ-गुमाँ से भी ज़ियादा टूट जाता है ये दिल अपनी हदों में रह के इतना टूट जाता है मैं रोऊँ तो दर-ओ-दीवार मुझ पर हँसने लगते हैं हँसूँ तो मेरे अंदर जाने क्या क्या टूट जाता है मैं जिस लम्हे की ख़्वाहिश में सफ़र करता हूँ सदियों का कहीं पाँव-तले आ कर वो लम्हा टूट जाता है मिरे ख़्वाबों की बस्ती से जनाज़े उठते जाते हैं मिरी आँखें जिसे छू लें वो सपना टूट जाता है न जाने कितनी मुद्दत से है दिल में ये अमल जारी ज़रा सी ठेस लगती है ज़रा सा टूट जाता है दिल-ए-नादाँ हमारी तो नुमू ही ना-मुकम्मल थी तो हैरत क्या जो बनते ही इरादा टूट जाता है मुक़द्दर में मिरे 'सागर' शिकस्त-ओ-रेख़्त इतनी है मैं जिस को अपना कह दूँ वो सितारा टूट जाता है