मिरे वजूद के आँगन में ख़्वाब रौशन था सवाद-ए-हिज्र में ताज़ा गुलाब रौशन था कली कली की ज़बाँ पर अज़ाब रौशन था ऐ हम-सफ़र दिल-ए-ख़ाना-ख़राब रौशन था ये किस हिसाब में झेली है मैं ने दर-ब-दरी तिरे सवाल-ए-बदन पर जवाब रौशन था मैं अपनी आग से खेला मैं अपने आप जला हिसार-ए-लम्स में उतरा सहाब रौशन था तू रत-जगों की मसाफ़त में गुम हुआ 'ख़ुर्शीद' इक आफ़्ताब पस-ए-आफ़्ताब रौशन था