मिरी हस्ती का जल्वों में तिरे रू-पोश हो जाना यहीं तो है बस इक क़तरा का दरिया-नोश हो जाना तुम्हें क्या ग़म मुबारक हो तुम्हें रू-पोश हो जाना हुआ जाता है अफ़्साना मिरा बेहोश हो जाना वही समझे हैं कुछ कुछ ज़िंदगी-ओ-मौत का हासिल जिन्हें आता है जीते जी कफ़न बर-दोश हो जाना ये अच्छी इब्तिदा की आप ने ऐ हज़रत-ए-मूसा दम-ए-दीदार अब लाज़िम हुआ बेहोश हो जाना ज़मीं का ज़र्रा ज़र्रा आइना-दार-ए-हक़ीक़त है कहीं अपने ही जल्वों में न तुम रू-पोश हो जाना बिसात-ए-दहर में ग़ाफ़िल भला जीने का हासिल क्या कि मरना भी जहाँ पर हो वबाल-ए-दोश हो जाना वो सर ज़ानू पे उन के वो हवा ज़ुल्फ़-ए-मोअ'म्बर की हमें तो होश से बढ़ कर है यूँ बेहोश हो जाना नज़र आते हैं अब जल्वे ही जल्वे हर तरफ़ मुझ को दलील-ए-होशियारी था मिरा बेहोश हो जाना वो उठना जल्वा-गाह-ए-नाज़ के पर्दे का नज़रों से वो मेरा देखते ही देखते बेहोश हो जाना कहीं नाकाम रह जाए न ज़ौक़-ए-जुस्तुजू अपना अदम से भी ख़याल-ए-यार हम-आग़ोश हो जाना गुज़र जा मंज़िल-ए-एहसास की हद से भी ऐ 'अफ़्क़र' कमाल-ए-बे-ख़ुदी है बे-नियाज़-ए-होश हो जाना