मिरी लग़्ज़िशों पे नज़र न कर मुझे रहमतों से नवाज़ दे बड़ा होगा मुझ पे तिरा करम तू मोहब्बतों से नवाज़ दे तिरे इश्क़ में भी मज़ा मिले तिरे हिज्र में भी मज़ा मिले रहूँ ग़म में तेरे जो मुब्तला उन्हीं चाहतों से नवाज़ दे तू बना ले अपना मुझे अगर मुझे फ़ख़्र होगा नसीब पर मिरा नाम होगा जहान में मुझे शोहरतों से नवाज़ दे नहीं कोई दिल में तिरे सिवा तू मिरा सनम है मिरा ख़ुदा मिरे दिल को जिस से जिला मिले उन्हें निस्बतों से नवाज़ दे फिरूँ कू-ब-कू यहाँ दर-ब-दर तिरे नक़्श-ए-पा पे मिरी नज़र तू बुला कर अपने क़रीब-तर मुझे क़ुर्बतों से नवाज़ दे