मिरी तारीकियों से भागता मैं तुम्हारी रौशनी से आ लगा मैं दिए जैसा बदन ढाँपे हुए था हवा होने का दम भरता हुआ मैं हज़ारों पेड़ हैं इस दश्त में और हज़ारों में कहीं तन्हा खड़ा मैं बदन हूँ रूह के इस दाएरे में और अपनी रूह का हूँ दायरा मैं हवा में जज़्ब पानी सोख लूँगा तुम्हारी ख़ाक से लिपटा हुआ मैं मिरे सीने से लग कर सो गया वो उसे सीने लगा कर जागता मैं अभी दस्तक सुनी मैं ने लिहाज़ा बदन के सब दरों को खोलता मैं तिरी बातों को सुनना भूल बैठा तिरी बातों में इतना मुब्तला मैं तू जब तक साथ है मेरा ख़ुदा है और उस के बाद हूँ अपना ख़ुदा मैं