मिरी वफ़ाओं का नश्शा उतारने वाला कहाँ गया मुझे हँस हँस के हारने वाला हमारी जान गई जाए देखना ये है कहीं नज़र में न आ जाए मारने वाला बस एक प्यार की बाज़ी है बे-ग़रज़ बाज़ी न कोई जीतने वाला न कोई हारने वाला भरे मकाँ का भी अपना नशा है क्या जाने शराब-ख़ाने में रातें गुज़ारने वाला मैं उस का दिन भी ज़माने में बाँट कर रख दूँ वो मेरी रातों को छुप कर गुज़ारने वाला 'वसीम' हम भी बिखरने का हौसला करते हमें भी होता जो कोई सँवारने वाला