मिसाल-ए-आईना रहना कोई मज़ाक़ नहीं कि सच को मुँह पे ही कहना कोई मज़ाक़ नहीं सुना है आँसू तो घड़ियाल के भी बहते हैं लहू का आँख से बहना कोई मज़ाक़ नहीं अभी है वक़्त सँभालो समाज को लोगो तमाम क़द्रों का ढहना कोई मज़ाक़ नहीं मज़ाक़ जिस में कि हुस्न-ए-मज़ाक़ ही न मिले मज़ाक़ ऐसा भी सहना कोई मज़ाक़ नहीं सुख़न-वरों को मज़ाक़-ए-सुख़न का पास रहे ग़ज़ल सुख़न का है गहना कोई मज़ाक़ नहीं चमन का हो के भी अहल-ए-चमन से ऐ 'आज़म' हमेशा ता'ने ही सहना कोई मज़ाक़ नहीं