मिसाल-ए-ख़्वाब हमेशा किसी सफ़र में रहे हम अपनी नींद में भी उस की रहगुज़र में रहे किसी की याद के बादल बरसने वाले थे बहुत ख़राब था मौसम सो आज घर में रहे तमाम उम्र उसी जिस्म से शिकायत थी तमाम उम्र उसी जिस्म के खंडर में रहे मता-ए-दर्द को आख़िर कहाँ कहाँ रखते सो मेरे गंज-ए-गिराँ-माया-ए-हुनर में रहे ये ज़िंदगी है 'क़मर' या कि जंगलों का सफ़र हर एक लम्हा यहाँ राह-ए-पुर-ख़तर में रहे