मिशअल-ए-उम्मीद थामो रहनुमा जैसा भी है अब तो चलना ही पड़ेगा रास्ता जैसा भी है किस लिए सर को झुकाएँ अजनबी के सामने उस से हम वाक़िफ़ तो हैं अपना ख़ुदा जैसा भी है किस को फ़ुर्सत थी हुजूम-ए-शौक़ में जो सोचता दिल ने उस को चुन लिया वो बेवफ़ा जैसा भी है सारी दुनिया में वो मेरे वास्ते बस एक है फूल सा चेहरा है वो या चाँद सा जैसा भी है फ़स्ल-ए-गुल में भी दिखाता है ख़िज़ाँ-दीदा-दरख़्त टूट कर देने पे आए तो घटा जैसा भी है