मिस्ल-ए-सरमद तालिब-ए-हक़-बीं अगर सर-दाद दाद देख ले मंसूर ने जी दार पर उस्ताद दाद इश्क़ है ऐ दिल कठिन कुछ ख़ाना-ए-ख़ाला नहीं रख दिलेराना क़दम ता तुझ को हो इमदाद दाद हो नहीं सकती है जिस की गोश-ज़द फ़रियाद दाद जिस ने आबादाँ मेरे दिल का नगर बर्बाद दाद रश्क-ए-दुनिया है किसी ने क्यूँ बराए चंद रोज़ ज़िंदगी अपने तईं अफ़्सोस या मीआ'द दाद किस से हो सकता है जो इस ने किया आलम के साथ सूरत-ए-ख़ाकी में कैसा कुछ दम-ए-ईजाद दाद ख़ुर्रम-ओ-ख़ुरसंद इक आलम है पर हैराँ हूँ मैं क्यूँ मुझे ख़ातिर हज़ीं होए दिल-ए-नाशाद दाद 'आफ़रीदी' उस शिकार-अंदाज़ से क्यूँकर बजे दाम में जिस के है सब ख़िल्क़त अज़ाँ सय्याद दाद