मिट गया ग़म तिरे तकल्लुम से लब हुए आश्ना तबस्सुम से किस के नक़्श-ए-क़दम हैं राहों में जगमगाते हैं माह-ओ-अंजुम से है ज़माना बड़ा ज़माना-शनास कभी मुझ से गिला कभी तुम से नाख़ुदा भी मिला तो ऐसा मिला आश्ना जो नहीं तलातुम से उस ने आ कर मिज़ाज पूछ लिया हम तो बैठे हुए थे गुम-सुम से नाख़ुदा ने डुबो दिया उन को वो कि जो बच गए तलातुम से ज़िंदगी हादसों की ज़द में है कोई कैसे बचे तसादुम से साया-ए-गुल में बैठने वालो गुफ़्तुगू होगी दार पर तुम से मैं ग़ज़ल का असीर हूँ 'एजाज़' शे'र पढ़ता हूँ मैं तरन्नुम से