ज़हर में बुझे सारे तीर हैं कमानों पर मौत आन बैठी है जा-ब-जा मचानों पर हम बुराई करते हैं डूबते हुए दिन की तोहमतें लगाते हैं जा चुके ज़मानों पर इस हसीन मंज़र से दुख कई उभरने हैं धूप जब उतरनी है बर्फ़ के मकानों पर शौक़ ख़ुद-नुमाई का इंतिहा को पहुँचा है शोहरतों की ख़ातिर हम सज गए दुकानों पर किस तरह हरी होंगी ए'तिमाद की बेलें जब मुनाफ़िक़त सब ने ओढ़ ली ज़बानों पर