मिटाते जाते हैं जो भी निशाँ बनाते हैं हम अपने पीछे कहाँ कारवाँ बनाते हैं हम अपने हाथ से अपना जहाँ बनाते हैं सितारे गढ़ते हैं और कहकशाँ बनाते हैं मजाल क्या जो किसी गुल को छू ले बाद-ए-सुमूम हम अपने तर्ज़-ए-अमल से ख़िज़ाँ बनाते हैं हमारे हाथ मगर बे-घरी ही लगती है ज़मीं बनाते हैं हम आसमाँ बनाते हैं उन्हें सँभाल के रखना हवा न देना तुम हमारे शे'र ये चिंगारियाँ बनाते हैं यक़ीन रक्खो ये मंज़र बदलने वाला है शरार उड़ने से पहले धुआँ बनाते हैं कुएँ से प्यास का रिश्ता कोई नया है क्या बनाने वाले अबस दास्ताँ बनाते हैं नया बनाने की धुन में पता नहीं चलता कहाँ बिगाड़ते हैं और कहाँ बनाते हैं किसी बुज़ुर्ग की सोहबत में बैठते हैं 'तलब' बला की धूप है अब साएबाँ बनाते हैं