मिट्टी हूँ भीगने दे मिरे कूज़ा-गर अभी मसरूफ़ गर्दिशों में है दस्त-ए-हुनर अभी ख़ुद बढ़ के क़त्ल-गाह में क़ातिल के सामने मक़्तूल हो गया है बहुत बा-असर अभी चेहरों भरी किताब में मिलती नहीं है अब देखी थी तेरी शक्ल किसी सफ़हा पर अभी चमके थे लफ़्ज़ तेरी समाअ'त की धूप में हुस्न-ए-ख़याल था कि हवा मो'तबर अभी दिल आबलों का रखने को शायद उतर पड़े अब्र-ए-रवाँ है दश्त में महव-ए-सफ़र अभी हम हैं चराग़-ए-आख़िर-ए-शब तो मलाल क्या बुझ भी गए हवा से तो होगी सहर अभी