घर मेरा था और इस में बसर तुम ने किया है आँगन को मेरे राहगुज़र तुम ने किया है ज़र्रों को मेरे शम्स-ओ-क़मर तुम ने किया है आफ़ाक़ को ता-हद्द-ए-नज़र तुम ने किया है अब इस की घनी छाँव ही सरमाया-ए-जाँ है एहसास के पौदे को शजर तुम ने किया है दीवार पे इक जलता दिया रक्खा था मैं ने रुख़ सारी हवाओं का इधर तुम ने किया है हर लम्हा मुझे मिलती है साँसों से गवाही मेरे लिए ख़ुशबू का सफ़र तुम ने किया है