मिज़ाज दर्द का ख़ूगर इसी लिए तो है ग़म-ए-फ़िराक़ मुक़द्दर इसी लिए तो है तुझे ख़बर थी मिरा दिल है आईना जैसा ये गुफ़्तुगू तिरी पत्थर इसी लिए तो है पनाह ले न सका जो ख़ुदा के घर में कभी ज़माने भर में वो बे-घर इसी लिए तो है तुम्हें तो दोस्त बनाने का शौक़ था ही बहुत तुम्हारी पीठ में ख़ंजर इसी लिए तो है तुम्हारी याद के बादल बरस रहे हैं यहाँ ये आँसूओं का समुंदर इसी लिए तो है तुम्हारी नस्ल की हालत बिगड़ने वाली है तुम्हारे हाथ में साग़र इसी लिए तो है उन्हें बताओ बुज़ुर्गों का है करम उस पर 'हिलाल' अच्छा सुख़नवर इसी लिए तो है