मुझे ये फ़ख़्र है तुम को ख़याल रहता है तुम्हारे ज़ेहन में कोई 'हिलाल' रहता है अभी लगी ही नहीं शोहरतों की गर्म हवा अभी से ख़ून में इतना उबाल रहता है हज़ार कोशिशें कर के तुम उस को जोड़ो मगर जो टूट जाता है इस दिल में बाल रहता है फ़क़त मुझे ही नहीं ग़म जुदाई का उस की उसे भी मुझ से बिछड़ कर मलाल रहता है ये सब हमारी मोहब्बत का एक सदक़ा है जो उस पे आज भी हुस्न-ओ-जमाल रहता है