मोड़ महाराँ आ घर साईं सूना पड़ा है बिस्तर साईं मैं हूँ तुझ बिन इस्म बरहना तू मिरे तन की चादर साईं फूल मिरी छाती से उठा ले बोझ बड़ा है दिल पर साईं ख़ाली है धरती का बर्तन बूँदें हैं छतरी भर साईं दो हाथों के प्याले में है सहरा और समुंदर साईं चिड़ियाँ बारिश में बैठी हैं तू हुजरे के अंदर साईं जिस को तिरे लब चूम रहे हैं शो'ला है या पत्थर साईं पड़ा हूँ दिन के दरवाज़े पर ओढ़े रात की चादर साईं