ज़बाँ ख़मोश-ओ-नज़र बे-क़रार है अब तक चला भी आ कि तिरा इंतिज़ार है अब तक ये सब नुमूद-ओ-नुमाइश है ख़ास तेरे लिए तिरे लिए ही चमन में बहार है अब तक नफ़स नफ़स में है बे-ताब आरज़ू तेरी नज़र नज़र को तिरा इंतिज़ार है अब तक तिरी जफ़ाओं से हर क़ल्ब हो चुका नालाँ ज़हे वो दिल कि जो तुझ पर निसार है अब तक नहीं किसी को किसी पर जो इख़्तियार न हो तुझे तो दिल पे मिरे इख़्तियार है अब तक असर ख़िज़ाँ का हर इक शय से हो चुका ज़ाहिर बहार-ए-हुस्न पे हुस्न-ए-बहार है अब तक ज़बान-ए-ग़ैर तिरे राज़ फ़ाश करती है मिरी निगाह मगर पर्दा-दार है अब तक चमन-तराज़-ए-मोहब्बत है दिल की गुल-कारी रविश-रविश मिरे ख़ूँ की बहार है अब तक तिरी ज़बाँ ने जो वा'दे किए वफ़ा न किए तिरी ज़बाँ का मगर ए'तिबार है अब तक तुम्हारे ग़म में उसे लुत्फ़ कुछ मिला ऐसा हमारे दिल को ख़ुशी नागवार है अब तक दिलों में याद तिरी चुटकियाँ सी लेती है ज़बाँ पे ज़िक्र तिरा बार बार है अब तक शहीद-ए-नाज़ हुईं कितनी बुलबुलें अफ़सोस बहार अपनी जगह पुर-बहार है अब तक ये जानता तो मैं यूँ उस को देखता न 'जुनूँ' मिरी निगाह से वो शर्म-सार है अब तक