मोहब्बत इक ग़म-ए-ना-इख़्तिताम होती है By Ghazal << एक रिश्ता दर्द का है मेरे... मिरे लिए तिरा होना अहम ज़... >> मोहब्बत इक ग़म-ए-ना-इख़्तिताम होती है न सुब्ह होती है उस की न शाम होती है मय-ए-शबाब-ओ-ग़ुरूर-ए-शबाब क्या कहना बस एक घूँट में तुर्की तमाम होती है जो राह-ए-अक़्ल-ओ-ख़िरद के लिए है ला-महदूद जुनून-ए-इश्क़ में बस एक गाम होती है Share on: