मोहब्बत ग़ैर-फ़ानी है मरज़ है ला-दवा मेरा ख़ुदा की ज़ात बाक़ी है मोहब्बत है ख़ुदा मेरा न जीते जी हुआ हरगिज़ वफ़ा ना-आश्ना मेरा पर उस की दास्ताँ बन कर रहा ज़िक्र-ए-वफ़ा मेरा जफ़ा का तेरी तालिब हूँ वफ़ा है मुद्दआ' मेरा यक़ीन-ए-ना-मुरादी पर भी देखो हौसला मेरा ये कैसी छेड़ है क्यों पूछते हो मुद्दआ-ए-दिल हुए जब मुद्दई के तुम सुनो क्यूँ मुद्दआ' मेरा पड़े क्यूँ सोच में तुम क़त्ल करके मेहरबाँ मुझ को वफ़ा की थी ख़ता की थी नहीं कुछ ख़ूँ-बहा मेरा नहीं मा'लूम किस पर आज फिर मश्क-ए-जफ़ा होगी कि है उन के लबों पर आज फिर ज़िक्र-ए-वफ़ा मेरा दिल-आज़ारी का बाइ'स हो नहीं सकती जफ़ा तेरी वही है ना-मुरादी पर भी अंदाज़-ए-वफ़ा मेरा ख़ुदा जाने हरीम-ए-नाज़ है कितनी बुलंदी पर कि गुज़रीं मुद्दतें लेकिन है नाला ना-रसा मेरा मुझे महशर में भी उम्मीद कम है दाद पाने की ख़ुदाई जब बुतों की है तो क्या होगा ख़ुदा मेरा मसीहाई का उन की इम्तिहाँ मंज़ूर है वर्ना मुझे मा'लूम है 'बेख़ुद' मरज़ है ला-दवा मेरा