वो अक्स-ए-ख़्वाब है पैकर नहीं है शुऊर-ए-ज़ात से बाहर नहीं है अगरचे आसमाँ सर पर नहीं है ज़मीं भी तो मिरा बिस्तर नहीं है फ़ज़ा मस्मूम होती जा रही है मिरी ख़ातिर मिरा ही घर नहीं है उफ़ुक़ के रंग हैं चेहरे पे उस के शिकस्त-ए-ख़्वाब का मंज़र नहीं है फ़क़त मैं हूँ तिरे मद्द-ए-मुक़ाबिल मिरे पीछे मिरा लश्कर नहीं है