मोहब्बत हासिल-ए-कौन-ओ-मकाँ भी मोहब्बत एक सई-ए-राएगाँ भी अजब शय है ज़बान-ए-बे-ज़बाँ भी ख़मोशी भी मुकम्मल दास्ताँ भी सुना है दर्द है तस्कीन-ए-जाँ भी लबों पर रुक गई आकर फ़ुग़ाँ भी फ़रोग़-ए-शो'ला-ए-रंग-ए-चमन पर तड़प कर रह गई बर्क़-ए-तपाँ भी फ़रेब-ए-शौक़ है या ख़ुद-फ़रेबी चमन के साथ फ़िक्र-ए-आशियाँ भी मिरी तीरा-शबी पर हँसने वालो सहर तक है फ़रोग़-ए-कहकशाँ भी मुझे देखा तो आईना भी देखो कि मेरे साथ अपना इम्तिहाँ भी निफ़ाक़-ए-दुश्मनाँ का तज़्किरा क्या नज़र में है ख़ुलूस-ए-दोस्ताँ भी कहाँ जाए तुम्हारे दर से 'ज़ैदी' कि दुश्मन है ज़मीं भी आसमाँ भी