मोहब्बत इस-क़दर का फ़ाएदा क्या यूँ होने दर-ब-दर का फ़ाएदा क्या तिरे बिन है मिरे किस काम का ये मिरे बर्बाद घर का फ़ाएदा क्या सुनो दस्तार दाग़ों से भरी है सलामत है जो सर का फ़ाएदा क्या अगर अब भी नहीं ये काम का तो मेरे छलनी जिगर का फ़ाएदा क्या ये ग़ालिब भूक थी तुम पूछते हो कटाए बाल-ओ-पर का फ़ाएदा क्या मिरी महरूमियाँ गर हैं सलामत तिरी अच्छी नज़र का फ़ाएदा क्या वो सुनने के लिए तय्यार कब था वज़ाहत बे-असर का फ़ाएदा क्या बसाया है मुझे तू ने जो दिल में तो फिर मुझ से मफ़र का फ़ाएदा क्या वफ़ा के नाम से वाक़िफ़ न हो जो तो हुस्न-ए-ख़ूब-तर का फ़ाएदा क्या मयस्सर रौशनी जिस की नहीं है तो फिर ऐसे क़मर का फ़ाएदा क्या