मोहब्बत का दिया ऐसे बुझा था हवा के दोश पर रक्खा हुआ था सितारा टूट कर जब भी गिरा था अजब धड़का सा दिल को लग गया था अजब वहशत थी तेरे आइने में जहाँ हर अक्स ही टूटा हुआ था लिपट कर चाँद से रोने लगा था सितारा टूट कर डर सा गया था उसे थी चाँद तारों की तलब और हमारे पास तो बस इक दिया था हज़ारों रंग थे इक आरज़ू के मगर मुझ को तो उस ने ख़ुद चुना था किसी अहद-ए-वफ़ा का हाथ थामे कोई इक मोड़ पर रोता रहा था किसी को दोश क्या दें डूबने का भँवर जो पाँव से लिपटा हुआ था अजब बे-फ़ैज़ थी ये भी मोहब्बत बहारों में ख़िज़ाँ का रूप सा था उधर से धूप को आने ना दूँगा तुझे कुछ याद है तू ने कहा था वही तिश्ना-लबी आँखों में सहरा वही मिज़्गाँ पे इक आँसू धरा था