मोहब्बत का जब रोज़ बाज़ार होगा बिकेंगे सर और कम ख़रीदार होगा तसल्ली हुआ सब्र से कुछ मैं तुझ बिन कभी ये क़यामत तरहदार होगा सबा मू-ए-ज़ुल्फ़ उस का टूटे तो डर है कि इक वक़्त में ये सियह-मार होगा मिरा दाँत है तेरे होंटों पे मत पूछ कहूँगा तो लड़ने को तय्यार होगा न ख़ाली रहेगी मिरी जागह गर मैं न हूँगा तो अंदोह बिसयार होगा ये मंसूर का ख़ून-ए-नाहक़ कि हक़ था क़यामत को किस किस से ख़ूँदार होगा अजब शैख़-जी की है शक्ल-ओ-शमाइल मिलेगा तो सूरत से बेज़ार होगा न रो इश्क़ में दश्त-गर्दी को मजनूँ अभी क्या हुआ है बहुत ख़्वार होगा खिंचे अहद-ए-ख़त में भी दिल तेरी जानिब कभू तो क़यामत तरहदार होगा ज़मींगीर हो इज्ज़ से तू कि इक दिन ये दीवार का साया दीवार होगा न मर कर भी छूटेगा इतना रुकेगा तिरे दाम में जो गिरफ़्तार होगा न पूछ अपनी मज्लिस में है 'मीर' भी याँ जो होगा तो जैसे गुनहगार होगा