मोहब्बत का जिसे इरफ़ाँ नहीं है वो सब कुछ है मगर इंसाँ नहीं है शुऊर-ए-ज़िंदगी पर मिटने वालो शुऊर-ए-ज़िंदगी आसाँ नहीं है तलब का हाथ बढ़ता जा रहा है ख़याल-ए-वुसअ'त-ए-दामाँ नहीं है ख़फ़ा बे-वज्ह नासेह हो रहे हो तुम्हारी बात कुछ क़ुरआँ नहीं है वो मस्त-ए-हाल है 'वसफ़ी' कि उस को ग़म-ए-दिल है ग़म-ए-दौराँ नहीं है