जफ़ा के बा'द हुआ है मगर मलाल तो है खुशा-नसीब उन्हें फिर मिरा ख़याल तो है अदू की बज़्म-ए-तरब में शरीक क्या होते मिज़ाज-ए-दोस्त में अब तक भी इश्तिआ'ल तो है ज़बाँ पे हर्फ़-ओ-हिकायात क्या ज़रूरी हैं गरेबाँ चाक दिखाना ही अर्ज़-ए-हाल तो है किसी की राह-ए-मोहब्बत में गामज़न होना हयात का यही ज़र्रीन इक मआल तो है जुनून-ए-शौक़ की तकमील हो न हो फिर भी किसी के पेश-ए-नज़र इश्क़ का सवाल तो है नज़र में प्यार इशारों में दिल की बात का अक्स ज़बाँ पे ज़ाहिरी इक उन की क़ील-ओ-क़ाल तो है तसव्वुरात में कोई समा रहा है 'ख़िज़र' क़रार फिर न सही अज़्म-ए-नेक-फ़ाल तो है