मोहब्बत का ये जज़्बा मरने का ना है वो अब मेरे दिल से उतरने का ना है कहाँ उस फ़रेबी की बातों में आए वो जो कह रहा है वो करने का ना है तिहत्तर गिरोहों में जब बँट गए हम तो शीराज़ा अपना बिखरने का ना है अभी तो शुरूआ'त है आशिक़ी की अभी भूत सर से उतरने का ना है तिरी मीठी बातों में चिपके तो है दिल ये क्या शर्त है तू मुकरने का ना है जुदाई के सदमे हैं बस चार दिन के किसी के लिए कोई मरने का ना है अगर भूल सकता भुला देता अब तक तिरी याद का ज़ख़्म भरने का ना है तू जब इतनी ऊँची उड़ानें भरेगा तो हासिद तिरे पर कतरने का ना है बला का वो हुशियार समझे है ख़ुद को मगर मेरे आगे ठहरने का ना है वो है बेवफ़ा तो कोई उस से कह दे 'फ़राज़' उस के सदमे में मरने का ना है