मोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों में रहा करती है शादाबी ख़िज़ाँ के भी महीनों में ज़िया-ए-मेहर आँखों में है तौबा मह-जबीनों के कि फ़ितरत ने भरा है हुस्न ख़ुद अपना हसीनों में हवा-ए-तुंद है गिर्दाब है पुर-शोर धारा है लिए जाते हैं ज़ौक-ए-आफ़ियत सी शय सफ़ीनों में मैं हँसता हूँ मगर ऐ दोस्त अक्सर हँसते हुए भी छुपाए होते हैं दाग़ और नासूर अपने सीनों में मैं उन में हूँ जो हो कर आस्तान-ए-दोस्त से महरूम लिए फिरते हैं सज्दों की तड़प अपनी जबीनों में मिरी ग़ज़लें पढ़ें सब अहल-ए-दिल और मस्त हो जाएँ मय-ए-जज़्बात लाया हूँ मैं लफ़्ज़ी आबगीनों में