मोहब्बत की करिश्मा-साज़ियाँ आवाज़ देती हैं तिरी यादों की अल्हड़ शोख़ियाँ आवाज़ देती हैं मुसाफ़िर लौटना चाहो तो लम्हों में पलट जाओ तुम्हें साहिल पे ठहरी कश्तियाँ आवाज़ देती हैं ज़रा सी देर में मौसम बदलने का ज़माना है हवा के बाज़ुओं की चूड़ियाँ आवाज़ देती हैं ख़िज़ाँ के ख़ौफ़ से सहमे परिंदो लौट भी आओ तुम्हें फिर लहलहाती टहनियाँ आवाज़ देती हैं चले जाते हैं हम अपना लहू ईंधन बनाने को धुआँ देती हुई जब चिमनियाँ आवाज़ देती हैं मैं जब भी शब के दामन पर कोई सूरज उगाता हूँ तिरी सोचों की गहरी बदलियाँ आवाज़ देती हैं ज़रा सी देर को कुछ शादमाँ लम्हे अता कर दो ज़रा सुनना ग़मों की तल्ख़ियाँ आवाज़ देती हैं 'शफ़ीक़' अहबाब अक्सर याद आते हैं हमें अब भी हवा के साथ बजती तालियाँ आवाज़ देती हैं