मोहब्बत को हमेशा से शरीक-ए-कार देखा है अदावत से हर इक रिश्ता यहाँ दुश्वार देखा है यहाँ आपस में हम-आहंग होना है बहुत मुश्किल कभी मुफ़्लिस भी देखा है कभी ज़रदार देखा है उछाली जा रही हैं पगड़ियाँ इल्ज़ाम है सर पर नहीं गर्दन पे सर जिस के वही सरदार देखा है मसाइल दूसरों के हल जो करते हैं हक़ीक़त है उन्हीं के घर में उठते बीच में दीवार देखा है अजब है हाल अब किस पर भरोसा हम करें 'अंजुम' यहाँ पर लूटने वालों को पहरे-दार देखा है