मोहब्बत में ज़ियाँ-कारी मुराद-ए-दिल न बन जाए ये ला-हासिल ही उम्र-ए-इश्क़ का हासिल न बन जाए मुझी पर पड़ रही है सारी महफ़िल में नज़र उन की ये दिलदारी हिसाब-ए-दोस्ताँ दर-दिल न बन जाए करूँगा उम्र भर तय राह-ए-बे-मंज़िल मोहब्बत की अगर वो आस्ताँ इस राह की मंज़िल न बन जाए तिरे अनवार से है नब्ज़-ए-हस्ती में तड़प पैदा कहीं सारा निज़ाम-ए-काएनात इक दिल न बन जाए कहीं रुस्वा न हो अब शान-ए-इस्तिग़ना मोहब्बत की मिरी हालत तुम्हारे रहम के क़ाबिल न बन जाए