मोहब्बत में तो जान-ओ-दिल का नज़राना भी होता है कफ़-ए-अफ़्सोस को मल मल के पछताना भी होता है तुझे पा कर ये जाना इश्क़ में सारी ख़ुशी पाली तुझे खो कर ये समझा इस में ग़म खाना भी होता है न फूलों में है रानाई न तारों में है ज़ेबाई बड़ा बे-कैफ़ शाम-ए-ग़म का अफ़्साना भी होता है मोहब्बत में जब इज़हार-ए-मोहब्बत पे हो पाबंदी तो दिल की बात को आँखों से समझाना भी होता है ये तेरी बे-रुख़ी तेरा तग़ाफ़ुल बेकली तेरी इन्हीं अश्काल में इस दिल को बहलाना भी होता है शबाब-ए-हुस्न पे ज़ेबा नहीं है नाज़ ऐ 'ख़ालिद' कली जब फूल बनती है तो मुरझाना भी होता है