मोहब्बत तुम से है लेकिन जुदा हैं हसीं हो तुम तो हम भी पारसा हैं हमें क्या इस से वो कौन और क्या हैं ये क्या कम है हसीं हैं दिलरुबा हैं ज़माने में किसे फ़ुर्सत जो देखे सुखनवर कौन शय हैं और क्या हैं मिटाते रहते हैं हम अपनी हस्ती कि आगाह-ए-मिज़ाज-ए-दिलरुबा हैं न जाने दरमियाँ कौन आ गया है न वो हम से न हम उन से जुदा हैं कभी रो रो के सोचेगी ये दुनिया अभी हम क्या बताएँ आह क्या हैं नहीं बनती है कुछ भी कहते सुनते अजब कुछ गू-मगू में मुब्तला हैं ये तेरी बे-रुख़ी ये सरगिरानी जिए जाते हैं जो हम बे-हया हैं जिगर बनता नहीं कुछ करते धरते कि बिल्कुल जैसे हम बे-दस्त-ओ-पा हैं