मोहब्बतों का ख़रीदार ढूँडने निकला ख़ुदा ख़ुद आज गुनहगार ढूँडने निकला कुछ इस क़दर था अँधेरा कि सुब्ह का सूरज हमारे कूचा-ओ-बाज़ार ढूँडने निकला मिरी तरह की फ़रासत है किस के पास कि मैं जो शहर हो गया मिस्मार ढूँडने निकला बदन की धूप ने वो हाल कर दिया है कि मैं रिदा-ए-साया-ए-अश्जार ढूँडने निकला अजीब मज्लिस-ए-अहल-ए-कमाल है कि यहाँ हर एक अपना तरफ़-दार ढूँडने निकला नई सदी में पुरानी सदी का सैलानी गुज़िश्ता अहद के आसार ढूँडने निकला लब-ए-फ़ुरात वो मंज़र था दीदनी 'मोहसिन' जब इक सवार को रहवार ढूँडने निकला