वुफ़ूर-ए-शौक़ की रंगीं हिकायतें मत पूछ लबों का प्यार निगह की शिकायतें मत पूछ किसी निगाह की नस नस में तैरते निश्तर वो इब्तिदा-ए-मोहब्बत की राहतें मत पूछ वो नीम-शब वो जवाँ हुस्न वो वुफ़ूर-ए-नियाज़ निगाह ओ दिल ने जो की हैं इबादतें मत पूछ हुजूम-ए-ग़म में भी जीना सिखा दिया हम को ग़म-ए-जहाँ की हैं क्या क्या इनायतें मत पूछ ये सिर्फ़ एक क़यामत है चैन की करवट दबी हैं दिल में हज़ारों क़यामतें मत पूछ बस एक हर्फ़-ए-बग़ावत ज़बाँ से निकला था शहीद हो गईं कितनी रिवायतें मत पूछ अब आज क़िस्सा-ए-दारा-ओ-जम का क्या होगा हमारे पास हैं अपनी हिकायतें मत पूछ निशान-ए-हिटलरी-ओ-क़ैसरी नहीं मिलता जो इब्रतों ने लिखी हैं इबारतें मत पूछ नशात-ए-ज़ीस्त फ़क़त अहल-ए-ग़म की है मीरास मिलेंगी और अभी कितनी दौलतें मत पूछ