मोहब्बतों का यही मसअला नहीं जाता हम उस से कैसे कहें क्या कहा नहीं जाता वो दर्द है तो मिरे दिल से क्यूँ नहीं उठता ये दर्द वो है जो मुझ से सहा नहीं जाता ये किस जहान का नक़्शा दिया गया है मुझे कि उस की सम्त कोई रास्ता नहीं जाता ज़रा सी मैं ने उसे ख़ुद में क्या जगह दे दी अब अपने आप में उस से रहा नहीं जाता मियाँ कभी न कभी दिलबराँ के कूचे में मुझे बताओ ज़रा कौन सा नहीं जाता ये ज़िंदगी भी तो फिर ज़िंदगी नहीं रहती बिछड़ के उस से अगरचे मरा नहीं जाता