दश्त की बद-दुआ' न लो लोगो पेड़ कहता है क्या सुनो लोगो ज़िंदगी इक हसीन मंज़र है हर घड़ी देखते रहो लोगो मेरे हाथों ने छू लिया है उसे मेरे हाथों को चूम लो लोगो अब जो रोते हो अपनी क़िस्मत पर मैं न कहता था मत करो लोगो मेरे बच्चे का कुछ क़ुसूर नहीं मेरे बच्चे को छोड़ दो लोगो