गिरता ही जा रहा है क्यों मेआ'र दिन-ब-दिन हम पर ही चल रही है क्यों तलवार दिन-ब-दिन तेरी बदल रही है जो गुफ़्तार दिन-ब-दिन देता है बे-सबब हमें आज़ार दिन-ब-दिन आँखों से अश्क बन के बरसती है तेरी याद यूँ ज़ख़्म हो रहे हैं नुमूदार दिन-ब-दिन पहली सी बात तुझ में कहाँ अब रही मौजूद तेवर बदल रहे हैं तिरे यार दिन-ब-दिन है आख़िरी कलाम मेरा सुन तो लीजिए जीना तिरे बिना हुआ दुश्वार दिन-ब-दिन सच बात है कि अब हया बाक़ी नहीं रही 'मोहसिन' बदल रहे हैं अब अतवार दिन-ब-दिन