अभी सच का दिया जलता कहाँ है हवा का रुख़ अभी बदला कहाँ है बहार-ए-दश्त-आराई का मौसम ज़मीनों पर अभी उतरा कहाँ है मुसाफ़िर हैं हम ऐसे क़ाफ़िले के पता जिस को नहीं जाना कहाँ है ग़ुबार-ए-आश्नाई उड़ रहा है कोई चेहरा नज़र आता कहाँ है सब अपने बहर-ए-ग़म में ग़ोता-ज़न हैं नशात-ए-दर्द का दरिया कहाँ है पहाड़ अब आबशारें रो रहे हैं ये बादल टूट कर बरसा कहाँ है अना ज़िंदा अगर है आदमी में तो फिर ये मौत से डरता कहाँ है मिरी हर शब मिरा हर दिन सफ़र है ख़ुदा मालूम अब रुकना कहाँ है अजब हलचल मिरे अंदर मची है क़यामत है मगर बरपा कहाँ है बगूले बाम-ओ-दर से पूछते हैं हमारे रक़्स का सहरा कहाँ है अजब बे-ख़्वाबियों में उम्र गुज़री जिसे सोचा उसे देखा कहाँ है दिलों में एक रब्त-ए-बाहमी है अभी ये सिलसिला टूटा कहाँ है गदायान-ए-मोहब्बत पूछते हैं हमारा वो सख़ी दाता कहाँ है कुलाह-ए-हिर्स कब रक्खी है सर पर क़बा-ए-किज़्ब को पहना कहाँ है हदीस-ए-ताअ'त-ओ-आयात-ए-हक़ को कोई इस दौर में सुनता कहाँ है शिआ'र-ए-इज्ज़-ओ-ज़ौक़-ए-इंकिसारी ये सिक्का शहर में चलता कहाँ है मैं दुनिया के लिए ज़िंदा हूँ 'मोहसिन' मुझे ख़ुद ख़्वाहिश-ए-दुनिया कहाँ है