मुँह आँसुओं से अपना अबस धो रहे हो क्यूँ हँसते जहान बीच खड़े रो रहे हो क्यूँ आ जाओ अपने मुख से मुखौटा उतार कर! बहरूपियों के साथ समय खो रहे हो क्यूँ क्या इस से होगा रूह के ज़ख़्मों को फ़ाएदा टूटे दिलों की सुन के सदा रो रहे हो क्यूँ इस घूमती ज़मीन का मेहवर ही तोड़ दो बे-कार गर्दिशों पे ख़फ़ा हो रहे हो क्यूँ ये बूढ़ी नस्ल जब कि तुम्हें मानती नहीं अपने बदन में इस का लहू ढो रहे हो क्यूँ