पलंग पर जो किताब ओ सिनान रख देगा नए सफ़र के लिए कुछ निशान रख देगा निशाना बाँधेगा वो पुश्त पर मगर जूँही पलट के देखोगे हँस कर कमान रख देगा ख़ुद उस की ज़ात अभी गोलियों की ज़द पर है वो कैसे शहर में अम्न-ओ-अमान रख देगा बिगड़ गया तो जुनूनी लहू भी पी लेगा जो ख़ुश हुआ तो वो क़दमों पे जान रख देगा गुमाँ न था कि लिफ़ाफ़े में ख़त के बदले वो लहू-लुहान तड़पती ज़बान रख देगा