मुँह जो देखे आईना गर काँच का मुस्कुरा उठे मुक़द्दर काँच का भूल जाऊँगा मैं अपने आप को अक्स पहचानेगा जो हर काँच का पत्थरों का है नसीबा औज पर ले गई तहज़ीब झूमर काँच का हाथ से बच्चे के पत्थर छीन लो आदमी है मेरे अंदर काँच का वाईपर के रक़्स से 'आजिज़' उसे फ़ैज़ पहुँचा ज़िंदगी भर काँच का