मुँह किताबी तेरा बयाज़ी नईं वो जवाबी है एतराज़ी नईं सर्व हर-चंद है ग़ुलाम तिरा लेकिन आज़ादगी का राज़ी नईं साहिब-ए-हाल को ज़माने में फ़िक्र-ए-मुस्तक़बिल और माज़ी नईं दाद बे-दाद तुझ सितम सूँ है बस-कि शहर-ए-हुस्न में क़ाज़ी नईं 'मुबतला' बाग़ में है शोर-ओ-फ़ुग़ाँ गुल कूँ बुलबुल की कुछ तक़ाज़ी नईं