नज़र मत बुल-हवस पर कर अरे चंचल सँभाल अँखियाँ कि उस बद-फ़े'ल सूँ खीचेंगी आख़िर इंफ़िआल अँखियाँ जुदाई से होवे मफ़रूर जाँ क़ालिब के सूबा सूँ अपस दीदार सूँ करती हैं फिर उस कूँ बहाल अँखियाँ निगाह-ए-गर्म गुल-रू सीं हुआ रौशन यू माली पर कि अब सूरज नमन नर्गिस पे लादेंगी ज़वाल अँखियाँ हुआ मा'लूम बद-काराँ तरफ़ नित सीन करने सूँ कि रजवारे में बस्ती हैं सिरीजन की जुह्हाल अँखियाँ जहाँ के रावताँ सूँ ग़म्ज़ा के नेज़ा कूँ चमका कर नज़र-बाज़ी के मैदाँ बीच करती हैं क़िताल अँखियाँ मुरव्वत का असर दस्ता नहीं उस शोख़ चितवन में मगर रखती हैं आशिक़ सूँ अपस दिल में मलाल अँखियाँ सियह-चश्मी हुई ज़ाहिर ललन की चश्म-पोशी में छुपाती हैं अपस मुश्ताक़ सूँ अपना जमाल अँखियाँ