मुद्दत हो गई साज़-ए-मोहब्बत खोल दे अब ये राज़ वो मेरी आवाज़ हैं बाँहों में उन की आवाज़ कितनी मनाज़िल तय कर आया मेरा शौक़-ए-नियाज़ ऐ नज़रों से छुपने वाले अब तो दे आवाज़ क्यूँ हर गाम पे मेरा दिल है सज्दों पे मजबूर क्या नज़दीक कहीं है तेरी जल्वा-गाह-ए-नाज़ अस्ल में एक ही कैफ़िय्यत की दो तस्वीरें हैं तेरा किब्र-ओ-नाज़ हो या हो मेरा जज़्ब-ए-नियाज़