मुद्दत हुई अब तक वो मेरा यार न आया दिल ले गया पर देने को दीदार न आया काफ़िर भी हुए उस बुत-ए-काफ़िर के लिए हम डाला है गले इश्क़ का ज़ुन्नार न आया दीवाना हूँ मैं हाल-ए-जुनूँ बे-सर-ओ-सामाँ लो कर के मुझे हिज्र का बीमार न आया ईमान दिल-ओ-जान तलक कर दिया क़ुर्बां पर मोनिस-ओ-हमदम मिरा ग़म-ख़्वार न आया ऐ बाद-ए-सबा तू मेरा अहवाल कर इज़हार अफ़सोस कि वो महरम-ए-असरार न आया मुश्ताक़ सदा हम तो हैं उस हुस्न-ए-अज़ल के वो शोख़-नज़र सानी-ए-तलवार न आया