मुद्दत हुई है वो मिरा मेहमाँ नहीं हुआ घर में इसी सबब से चराग़ाँ नहीं हुआ शामें उदास रातें भी बे-नूर हैं बहुत वो मुद्दतों से बज़्म-ए-निगाराँ नहीं हुआ आएगा वो ज़रूर मिरी अंजुमन में फिर दिल मेरा इस लिए भी हिरासाँ नहीं हुआ मेरी अना ने राह में दीवार खींच दी इस बार भी सफ़र मिरा आसाँ नहीं हुआ इस बार भी बहार नए ज़ख़्म दे गई इस बार भी वो दर्द का दरमाँ नहीं हवा मैं ने भी अपनी पलकें भिगोईँ नहीं 'निगार' वो भी बिछड़ते वक़्त परेशाँ नहीं हुआ